युवाओं के लिए प्रेरणादायक है मधुसूदन मधु का जीवन संघर्ष : मिस्त्री
दुमका । मयूराक्षी के बैनर तले दुमका के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार मधुसुदन मधु की जयंती रविवार को मनाई गई जिसकी अध्यक्षता डॉ रामवरण चौधरी ने किया। विद्यापति झा ने सतीश चौरा में उनके क्रियाकलापो को याद करते हुए अपने संस्मरण सुनाये। अमरेंद्र सुमन ने बताया कि किस तरह उनके मार्गदर्शन का लाभ उन्हें साहित्यसृजन में मिला। दुर्गेश चौधरी ने उनकी लघु कथा का संक्षेप में पाठ किया और उनके व्यक्तित्व के निर्दाेष पक्ष को उजागर किया। केशव सिन्हा ने दुमका दर्पण को याद करते हुए अपने विचार साझा किये। कार्यक्रम का संयोजन कर रहे अंजनी शरण ने कहा कि सृजन करने वालो की भीड़ में मधुसूदन मधु सिर्फ सृजन ही नही करते थे उनकी बात लोगो तक पहुंचती थी। उनकी अनुपस्थिति में दुमका निःशब्द तो नही हुआ पर फिर भी गूँगा प्रतीत होता है। अरुण सिन्हा ने मधु के व्यक्तित्व का चित्रण और जयंती मनाने का महत्व बताते हुए मयूराक्षी के कर्तव्यबोध को लेकर अपने संकल्प दुहराया। युवा साहित्यकार रोहित अम्बष्ठ ने मधु की कविता ‘‘मैंने तेरे फूलों से कांटो से प्यार किया’’ का पाठ किया। अनुराग, अमित झा, कश्यप नंदन ने उनके गीत और कविताओ का पाठ किया। वरिष्ठ साहित्यकार शम्भू नाथ मिस्त्री ने भाषा संगम के कार्यकाल को याद करते हुए मधु की सहित्यजीविता और सहयात्रा के स्वर्णिम काल को याद किया। मिस्त्री ने कहा मधु खुद लिखते, खुद कंपोज करते, खुद छपवाते और खुद बाँट आते थे। उनके संघर्ष की कहानी युवाओं के लिये प्रेरणा रूप में थी। चतुर्भुज नारायण मिश्र ने अपने पांच दशकों से भी ज्यादा के साहचर्य का अपना अनुभव बताते हुए मधु को निष्ठावान एवं ईमानदार तथा परिस्थितियों से लड़ने की उनकी जिजीविषा को स्मृत किया। डॉ रामवरण चौधरी ने मधु के जीवन के उन पक्षो पर विस्तार से बात की जिनसे प्रेरणा ली जा सकती है। उनके साथ यात्राओ का वृतांत साझा करते हुए डॉ चौधरी ने मधु को सरल हृदय का साहित्यकार कहा जिनका ओढ़ना बिछावन सब साहित्य ही था।
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