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कहानी सन उन्नीस सौ सेंतालीस की.....


भारत के लोग अभी अखण्ड हिंदुस्तान की आजादी का सपना पाले हुए ही थे कि तीन जून उन्नीस सौ सेंतालीस को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने ऑल इंडिया रेडियो में घोषणा की " हिंदुस्तान सदियों से तीतर-बितर रहने के बावजूद ब्रिटिश राज्य में एक हुआ और एक रहा। ब्रिटिश नीति का पहला उद्देश्य ये रहा कि इस एकता को बनाए रखा जाए और हमे उमीद थी कि देश के आजाद होने के बाद भी वो बना रहेगा। केबिनेट मिशन भेजने के पीछे भी यही उद्देश्य था,लेकिन हिंदुस्तान के नेता इस बात पर सहमत नही हो सके, अब इसका मतलब यह है कि ब्रिटिश हिंदुस्तान का बंटवारा कर हिंदुस्तान का राज-काज अब दो सरकारों को कुछ ही महीने के भीतर सौंप दिया जाए। “ जून के तीसरे सप्ताह हिंदुस्तान के बंटवारे को लेकर माउंट बेटन ने एक बैठक बुलाई जिसने जिन्ना और पटेल के बीच गरमागरम बहस हुई।

दरअसल गांधी, नेहरू और पटेल हिंदुस्तान के बंटवारे पर राजी नहीं थे जबकि जिन्ना बंटवारे के पक्ष में थे। सत्ताइस जून उन्नीस सौ सेंतालिस को हिंदुस्तान के बंटवारे के लिए ब्रिटेन के जज रेडक्लिफ को भेजा गया जिसे हिंदुस्तान के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। उसे हिंदुस्तान की जानकारी के लिए कुछ जिले की लिस्ट सौंपी गई थी जिसमे बताया गया था किस जिले में हिंदू आबादी अधिक है और किस जिले में मुस्लिम आबादी। रेडक्लिफ को हिंदुस्तान का बंटवारा ही नही करना था बल्कि नौ करोड़ जनता और एक लाख पचहत्तर हजार वर्ग मिल के जमीन के टुकड़े का भी भाग्य मुकर्रर करना था इसके साथ ही राजशाही सामानों का भी दोनो मुल्क के बीच बंटवारा करना था। इस बंटवारे को देखकर माउंट बेटन ने कहा था " मुझे लग रहा है रेडक्लिफ झाड़ी काटने वाला एक बड़ा सा केंची लेकर आए हैं और महज दस दिनों में ही उन दोनो के बीच संबंध सामान्य नही रहा ।



भारत ने टॉस में जीता था पाकिस्तान से शाही बग्घी....

इस बंटवारे में दो जगह बात आकर अटक गई कि ये किसके हिस्से जाए ? एक शाही बग्घी जिसे टॉस करके निपटाया गया जिसमें भारत की जीत हुई और दूसरा लाहौर का पागलखाना जिसके हिंदू मरीज को हिंदुस्तान भेजना था और मुस्लिम मरीज को पाकिस्तान में रखना था। जिसमे बिशन सिंह नाम का सिख जो टोबा टेक का रहने वाला था जिसे जब हिंदुस्तान भेजने की बात होने लगी तो वो तैयार नहीं हुआ और लाहौर के पागलखाने का विभाजन नही हो सका। इधर चार जुलाई को गांधी और राजेंद्र प्रसाद माउंट बेटन के पास गए और उनसे तत्काल भारत का गवर्नर जनरल बने रहने की बात कही जिसे ब्रिटेन ने स्वीकार कर लिया । लेकिन इन सब के बीच जो बड़ी मुश्किल थी वो था बंगाल और पंजाब का विभाजन। रेडक्लिफ के विभाजन रेखा का मसौदा अभी ब्रिटेन के संसद में पास भी नहीं हुआ था और भारत में छिटपुट धार्मिक दंगे शुरू हो गए। माउंट बेटन इससे अनभिज्ञ नहीं थे और इसके लिए उन्होंने पंजाब में पचास हजार सैन्य बल तैनात किए थे लेकिन बंगाल की स्थिति को नियंत्रण में रखना उनके बस की बात नही थी और फिर वो गांधी के पास गए और कहा " पंजाब के दंगों से निपटने के लिए तो मैंने पचास हजार मिलिट्री तैनात कर दी है लेकिन बंगाल के दंगों को रोक पाना मेरे बस की बात नही और ऐसे में अब आपका सहारा है " इस बाबत गांधी से मिलने सोहराबवर्दी भी गए थे और उनसे दंगे रोकने की अपील की जिस पर गांधी ने कहा " तुम्हे भी मेरे साथ चलना होगा " और वो राजी हो गए । पूर्वानुमान भय के अनुसार दंगे हुए जहां एक ओर पचास हजार मिलिट्री थी तो दूसरे तरफ अकेले गांधी। मिलिट्री पंजाब के दंगे को पूरी तरह रोकने में असफल हुई वही गांधी ने इसमें सफलता पाई।


माउंट बेटन ने जिन्ना को उपहार स्वरूप अपनी रोल्स रॉयस गाड़ी दी थी

पंद्रह जुलाई को ब्रिटेन के संसद में भारत के बंटवारे का बिल पास हुआ और क्लीमेंट एटली ने घोषणा की भारत के गवर्नर जनरल माउंट बेटन होंगे वहीं पाकिस्तान के अली जिन्ना । बीस जुलाई को पच्चीस पन्नों का एक कैलेंडर दोनो कार्यालय में भेज दिया गया जिसमे अवकाश की तिथि थी । सात अगस्त को जिन्ना दिल्ली छोड़कर कराची के लिए पालम एयरपोर्ट रवाना हुए और माउंट बेटन ने उन्हें उपहार स्वरूप अपनी रोल्स रॉयस गाड़ी के साथ अपना ओ डी सी एहसान अली को सौंपा । इधर चार अगस्त को मुंबई के होटल ताज में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया और " ओह गोड सेव अवर किंगडम " के गाने पर रोक लग गई। अंग्रेजी हुक्मरान के हाथों से वक्त तेजी से फिसल रहा था और वो चाहते थे भारत के रजवाड़े शीघ्र इस निर्णय पर आ जाएं की उन्हे किधर जाना है ।

इस बीच एक पंडित की भविष्यवाणी हुई की पंद्रह अगस्त को दिन ठीक नही है इसलिए इस दिन आजादी की घोषणा ना हो और उधर जिन्ना भी चाहते थे की तेरह अगस्त के दिन ईद रहेगी इसलिए इस दिन सत्ता का हस्तांतरण न हो और फिर दिन तय हुआ चौदह अगस्त उन्नीस सौ सेंतालिस। इसी दिन नेहरू जब नाश्ता के टेबल पर थे तब उन्हे फोन आया लेकिन बारिश होते रहने के कारण आवाज साफ नही आ रही थी तो नेहरू ने कहा " आप जो बोलना चाहते हैं उसे फिर से बोलें " और फिर नेहरू ने जो सुना तो अपना सर पकड़ कर बैठ गए। उनके बगल खड़ी उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा तो वो बोले " लाहौर में हिंदू और सिख वाले इलाके में पानी और बिजली की सप्लाई बंद कर दी गई है और मार काट मच गया है मेरे खूबसूरत लाहौर को क्या हो गया है? ऐसे में मै कैसे भाषण दे पाऊंगा ? तब इंदिरा ने उन्हे ढाढस बंधाते हुए कहा " आप अपनी भाषण की तैयारी करे इधर माउंट बेटन को पाकिस्तान की आजादी में शरीक होना था , वो पाकिस्तान के लिए रवाना हो गए जहां आजादी मनाना था और वहां राष्ट्र गान के रूप में " मेरा रंग दे बसंती चोला गाया गया क्योंकि तब तक वहां राष्ट्र गान नही बना था शाम तक माउंट बेटन को हिंदुस्तान भी लौटना था।


चौदह अगस्त की रात बारह बजे यानी पंद्रह अगस्त उन्नीस सौ सेंतालिस स्थान दिल्ली की प्रिंसेस पार्क में जब नेहरू राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहे थे तब अनुमान के मुताबिक तीस हजार के बदले पांच लाख लोग जमा हो गए थे , भीड़ खुशी में पागल थी और तब नेहरू भीड़ के सिर नुमा बने कालीन पर चढ़कर तिरंगा फहराया और फिर सुचेता कृपलानी ने सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान और फिर बंकिम चटर्जी द्वारा रचित वंदे मातरम गाया ।


चार्चिल ने कहा था भारत के लोग आजादी को सभाल नही पायेंगे

चर्चिल जो इस आजादी के विरोध में थे उनका कहना था भारत के लोग यह संभाल नही पाएंगे और फिर जब भी भारत में अकाल पड़ता या उग्रवादी घटना होती तो वो भारत की असफलता और नेताओं की कड़ी निन्दा करते लेकिन इसके बाद भी यह देश आज अपना चोहत्तर वर्ष पूरा कर रहा है । जिन्हे लगता है भारत में कुछ नही हुआ उन्हे सोचना चाहिए हम भारत को एक रखने के साथ साथ उन्नत बनाए रखने में भी सफल हुए ।







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