शिबू सोरेन: एक युग का अंत झारखंड की राजनीति के सबसे बड़े स्तंभ का अवसान
- SANTHAL PARGANA KHABAR
- Aug 4
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✍️ डॉ. राज कुमार उपाध्याय / दुमका
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक, 'दिसोम गुरू' के नाम से प्रसिद्ध आदिवासी नेता शिबू सोरेन का रविवार को निधन हो गया। 81 वर्ष की उम्र में उनका राजनीतिक जीवन इतिहास बन गया, लेकिन आदिवासी चेतना के प्रतीक और झारखंड की आत्मा के रूप में उनका व्यक्तित्व हमेशा जीवित रहेगा।
🔹 विराट राजनीतिक सफर:
10 बार लोकसभा सांसद, 8 बार दुमका से निर्वाचित
2 बार राज्यसभा सांसद – एनडीए और यूपीए दोनों के समर्थन से
3 बार झारखंड के मुख्यमंत्री
2 बार केंद्र में कोयला मंत्री

🔹 1970 के दशक में किया महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन
1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना कर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई शुरू की। 1975 में चिरूडीह की घटना के बाद संथाल परगना में एकजुटता का बड़ा आंदोलन शुरू हुआ।

🔹 संसद में दबदबा और संघर्षों का दौर
1980 से लेकर 2014 तक दुमका सीट से 8 बार जीत हासिल की। 2004 में सबसे बड़ी जीत – 54% वोट शेयर के साथ भाजपा प्रत्याशी सोनेलाल हेम्ब्रम को हराया।
🔹 चुनावी संघर्ष और उल्लेखनीय आंकड़े:
वर्ष विपक्षी उम्मीदवार जीत का अंतर
1980 पृथ्वी चंद्र किस्कु 3,513 वोट
1989 पृथ्वी चंद्र किस्कु 1,09,601 वोट
1991 बाबूलाल मरांडी 1,33,641 वोट
1996 बाबूलाल मरांडी 5,478 वोट
2002 रमेश हेम्ब्रम 94,205 वोट
2004 सोनेलाल हेम्ब्रम 1,15,015 वोट
2009 सुनील सोरेन 18,812 वोट
2014 सुनील सोरेन 39,030 वोट
🔹 एक आंदोलनकारी से मुख्यमंत्री तक का सफर
महाजनी प्रथा, भूमि अधिकार, और आदिवासी अस्मिता के लिए संघर्ष करते हुए शिबू सोरेन ने झारखंड राज्य की मांग को धार दी। राज्य गठन के बाद वे तीन बार मुख्यमंत्री बने।

🔹 आदिवासी समाज के लिए भगवान थे ‘गुरूजी’
रामगढ़ के नेमरा गांव से निकलकर देश की संसद तक पहुंचे शिबू सोरेन को आदिवासी समाज भगवान की तरह पूजता है।
उन्होंने कभी-कभी बिना प्रचार के भी चुनाव जीता – 2009 में लोकसभा और जामताड़ा विधानसभा की जीत इसका प्रमाण हैं।
🕯️ श्रद्धांजलि:
शिबू सोरेन का जीवन एक प्रेरणा है – संघर्ष, सेवा और नेतृत्व का प्रतीक। उनका निधन केवल एक राजनेता का अंत नहीं, बल्कि झारखंड की एक जीवित परंपरा का अवसान है।








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