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Writer's pictureSanthal Pargana Khabar

एसपी कॉलेज में धूमधाम से मनाया गया संथाल परगना दिवस

दुमका. एसपी कॉलेज परिसर में छात्र समन्वय समिति सिदो कान्हु मुर्मु विश्वविद्यालय के द्वारा 167वाँ संताल परगना स्थपना दिवस समारोह बड़े ही धूमधाम से मनाया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में दुमका अंचल अधिकारी यमुना रवि दास, विशिष्ट अतिथि के रूप में एसपी कॉलेज के प्राचार्य डॉ खिरोदर प्रसाद यादव, दुमका जिला कांग्रेस के अध्यक्ष महेश राम चंद्रवंशी मौजूद थे. सर्वप्रथम छात्र समन्वय समिति सिदो कान्हु मुर्मु विश्वविद्यालय के द्वारा भगवान बिरसा मुंडा, सिदो कान्हु मुर्मु, फूलो झानो एवं एसपी कॉलेज के संस्थापक स्व लाल बाबा हेम्ब्रेम की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्प अर्पित कर उनको नमन किया गया.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में सीओ यमुना रविदास ने अपने संबोधन में कहा कि संताली दुनिया का सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है.उन्होंने कहा कि यह उन आदिवासियों की मातृभूमि है जिन्होंने लंबे समय से एक अलग राज्य का सपना देखा था. ब्रिटिश राज के दौरान आदिवासियों द्वारा यहाँ कई विद्रोह हुए थे जिसमें तिलका मांझी, बिरसा मुंडा, कान्हू मुर्मू और सिद्धू मुर्मू इत्यादि जैसे आदिवासियों ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. झारखंड देश का एक ऐसा राज्य है जहां भरपूर मात्रा में प्राकृतिक संपदा का भंडार है जैसा कि हम इसके नाम से ही जान सकते हैं कि झारखंड मतलब जंगलों की भूमि, जंगल अर्थात प्राकृतिक संपदा का घर वही कॉलेज प्राचार्य डॉ खिरोधर प्रसाद यादव ने अपने स्वागत भाषण में छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि संथाल परगना स्थापना दिवस, झारखंड वासियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि इसी दिन झारखंड को अपनी एक नई पहचान मिली थी और इसी संथाल परगाना में संथाल आदिवासी परिवार में दो विर भईयों का जन्म हुआ जिसे हम सिदो-कान्हू मुर्मू के नाम से जानते हैं जिसने अंग्रेजो के आधुनिक हथियारों को अपने तीर धनुष के आगे झुकने पर मजबूर कर दिया था. जोत जमीन एवं जंगल के रक्षा के लिए जमीन से जुड़े आदिवासियों के आंदोलन के एक लंबा इतिहास रहा है. जनजातियों में संथालों का विद्रोह सबसे जबरदस्त था. भारत से अंग्रेजों को भगाने के लिए यह प्रथम जनक्रांति थी जो संथाल हूल के नाम से प्रसिद्ध हुई. समारोह में कॉलेजों से आई सांस्कृतिक टोलियों द्वारा रंगारंग कार्यक्रम पेश किए गए छात्र छात्राओं ने संगीत के साथ सामूहिक लोक नृत्य एवं परंपरागत नृत्य से समा बांधा. इस इस अवसर पर श्यामदेव हेंब्रम, राजेंद्र मुर्मू राजीव बासकी,बाबुराम सोरेन, पुष्पालाता हेम्ब्रम, मंगल बाबूराम टुडू, शकल हेंब्रम, विजय सिंह हंसदा, भीम सेंट सोरेन, फ्रांसिस सोरेन , अर्नेस्ट हेंब्रम,दिलीप कुमार टुडू, मंगल सोरेन,वीरेंद्र किस्कू,रितेश मुर्मू, पालटन मुर्मू,,हरेंद्र हेंब्रम , शीतल बास्की , दिनेश टुडू , उपेन्द्र मरांडी , रितेश मुर्मू , सुलीश सोरेन , दिलीप हेंब्रम , शिवकुमार हेंब्रम , रुसिक हांसदा , संजय हांसदा , सुखदेव बेसरा , अर्नेस्ट हेंब्रम आदि मौजूद थे


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