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Writer's pictureSanthal Pargana Khabar

एक शिक्षक पैंतीस पीढ़ियों को प्रभावित करता है, शिक्षक दिवस पर विशेष


एक शिक्षक पैंतीस पीढ़ियों को प्रभावित करता है , वो समाज निर्माता , राष्ट्र निर्माता है । भारत में शिक्षक दिवस पहली बार उन्नीस सौ बासठ में मनाया गया जो आज तक मनाया ही जा रहा है । डॉ सर्व पल्ली राधाकृष्णन का जन्म पांच सितंबर अठारह सौ अठासी को तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में हुआ । इनके पिता का नाम सर्वपल्ली विरासमियाह और माता का नाम सीतम्मा था । उन्नीस सौ दो में उन्होंने मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की साथ ही उन्हें छात्रवृति भी मिली उन्नीस सौ पांच में उन्होंने कला संकाय में दर्शन शास्त्र के विषय से मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए और उन्हे छात्रवृति भी मिली और बाद में इसी कोलेज में सहायक प्राध्यापक और प्राध्यापक के रूप में काम किया । बाद में वो मद्रास कॉलेज और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति भी नियुक्त हुए ।

उनके जीवन का सबसे कठिन काम था उन्नीस सौ पचास में जब वो रूस के राजदूत बन कर गए , उस समय रूस का नजरिया भारत के प्रति सकारात्मक नही था उनका मानना था भारत साम्राज्यवाद और पूंजी पति के गोद में बैठ कर खेल रहा है । राधाकृष्णन ने उनकी इस अवधारणा को बदलने में सफलता प्राप्त की वो जानते थे रूस में दार्शनिकों को प्रतिष्ठा दी जाती है इस दौरान वो दिन भर काम करते और रात में भारतीय दर्शन पर किताब लिखा करते थे और इस दौरान वो मात्र दो घंटा ही सोते थे । राधाकृष्णन से जब स्टालिन ने पूछा क्या भारत में अंग्रेजी भाषा में ही कार्य होता है तो उन्होंने जवाब दिया " भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है " जिससे स्टालिन बहुत खुश हुए । उन्नीस सौ बावन में जब वो भारत लौटे तो उन्हें भारत का उपराष्ट्रपति बनाया गया और इस पद पर वो उन्नीस सौ बासठ तक रहे । सर्वपल्ली राधा कृष्णन ने विवेकानंद के सिद्धांत का अध्ययन किया और उन्होंने बाइबल भी याद की इसी क्रम में शिकागो में उन्हे प्रवक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था जहां से वो विजय होकर लौटे । भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी ने उन्हे भारत रत्न उपाधि से सम्मानित किया और राजेंद्र प्रसाद के बाद वो उन्नीस सौ बासठ से सड़सठ तक भारत के राष्ट्रपति के रूप में भी काम किए ।

सर्व पल्ली राधाकृष्णन कहते थे भारत में इस अवधारणा को बल नही मिलना चाहिए की " हिंसा के बिना अवयवस्था का परिवर्तन संभव नही है "

। उन्होंने अपने जीवन में इंडियन फिलासफी ,माय सर्च फॉर ट्रुथ ,। रिलीजन एंड सोसाइटी, द फिलोसॉफी ऑफ रविंद्र नाथ टैगोर , द एथिक्स ऑफ वेदांता जैसी कई किताबें लिखी । देश आज इस महान शिक्षाविद और दार्शनिक को नमन कर रहा है ।



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