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बिशनपुर के विस्थापितों ने जमीन पर बैठाकर प्रबंधन को दिखाई 'जमीनी सच्चाई'


पाकुड़: नॉर्थ कॉल ब्लॉक से विस्थापित बिशनपुर गांव के ग्रामीणों ने सोमवार को वेस्ट बंगाल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (WBPDCL) के अधिकारियों और कॉल ब्लॉक प्रबंधन के साथ बैठक में अपनी वर्षों पुरानी जमीनी मांगों को मजबूती से रखा। इस दौरान ग्रामीणों ने अधिकारियों को कुर्सी छोड़ जमीन पर बैठने को मजबूर कर दिया — एक प्रतीकात्मक लेकिन प्रभावशाली संदेश कि अब वे अपने अधिकारों के लिए झुकने को नहीं, बल्कि झुकवाने को तैयार हैं।


ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कोयला खनन के नाम पर उन्हें गांव से विस्थापित कर दिया गया, लेकिन पिछले 7 वर्षों में न तो उन्हें मुआवजा मिला, न ही नौकरी और न ही कोई बुनियादी सुविधा। अब कंपनी चिलगो गांव में खनन शुरू कर रही है, जबकि बिशनपुर के विस्थापितों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।

प्रबंधन को झुकना पड़ा


बैठक के दौरान जब ग्रामीणों ने प्रबंधन के सामने स्पष्ट रूप से दस्तावेजों के आधार पर अपनी बात रखी, तो प्रबंधन को झुकना पड़ा। माइनिंग और ट्रांसपोर्टिंग कार्य को तब तक के लिए बंद रखने का निर्णय लिया गया, जब तक कि विस्थापितों की मांगों को पूरा न कर दिया जाए। जिला प्रशासन ने भी ग्रामीणों की बात को गंभीरता से लिया और प्रबंधन से समय देने की अपील की, पर ग्रामीण अपने रुख पर अडिग रहे।


आयोग ने लिया संज्ञान


इस मुद्दे पर अब राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी संज्ञान लिया है और जल्द ही पाकुड़ पहुंचकर धरातल पर कामों की समीक्षा करेगा। विस्थापितों की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे खनन कार्य को दोबारा शुरू नहीं होने देंगे।

यह घटना न सिर्फ विस्थापितों के आत्मसम्मान और एकता का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि अगर लोग संगठित होकर अपने हक के लिए आवाज़ उठाएं, तो बड़े से बड़ा तंत्र को झुकना पड़ता है।

 
 
 

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