खिजुरिया आवास में पहली बार सोरेन परिवार की तीसरी पीढ़ी ने किया प्रेस कॉन्फ्रेंस
दुर्गा सोरेन सेना नामक सामाजिक संगठन के बैनर तले झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन परिवार की तीसरी पीढ़ी जयश्री सोरेन ने दुमका की धरती पर धमाकेदार इंट्री की है। सोरेन परिवार की परंपरा के अनुरूप जयश्री सोरेन ने पोखरा चौक स्थित सिदो कान्हू की प्रतिमा पर मांदर ओर नगारे के साथ माल्यार्पण किया और फिर खिजुरिया में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें कई युवाओं ने दुर्गा सोरेन सेना (डीएसएस) की सदस्यता ग्रहण की। वैसे तो डीएसएस का गठन विजयादशमी के दिन रांची में किया गया था पर उसकी केंद्रीय अध्यक्ष जयश्री सोरेन के द्वारा सोमवार को दुमका के खिजुरिया स्थित गुरूजी (शिबू सोरेन) आवास पर झामुमो से अलग हट कर बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने को राजनीतिज्ञ विश्लेषक सोरेन परिवार के राजनीतिक विरासत में स्व. दुर्गा सोरेन की बेटियों के द्वारा हिस्सेदारी के दावे के रूप में देख रहे हैं। रांची के तरह ही दुमका में आयोजित कार्यक्रम से भी जामा विधायक और जयश्री सोरेन की मां सीता सोरेन ने दूरी बनाये रखी। जिस तरह से इस कार्यक्रम का आयोजन हुआ, युवाओं की भागीदारी दिखी और जिला मुखिया संघ के अध्यक्ष भी शामिल हुए, उससे साफ हो गया है कि आगामी पंचायत चुनावों में झामुमो को डीएसएस समर्थित प्रत्याशियों से मुश्किल हो सकती है।
जयश्री सोरेन ने हेमंत सरकार को कटघरे में खड़ा किया पर बचाव भी करती रही
खिजुरिया के गुरूजी आवास में जयश्री सोरेन ने प्रेस कान्फरेंस के दौरान लगातार राज्य की हेमंत सोरेन सरकार को कटघरे में खड़ा किया पर साथ ही सरकार का बचाव भी करती रही। उन्होंने कहा कि वह सरकार का विरोध नहीं कर रही हैं। झामुमो यहां की समस्याओं के समाधान का अच्छी तरह से प्रयास कर रही है। जयश्री ने कहा कि उन्होंने चुनाव के बारे में अभी सोचा नहीं है। अभी उनका फोकस राज्य के विकास पर है। उन्होंने दूसरे राज्यों में विकास के स्तर को देखा है, झारखण्ड में उस तरह का विकास नहीं हो पाया है। उनके दादा शिबू सोरेन को झारखण्ड का विकास करने का ठीक से मौका नहीं मिला है। वह जब भी उपर आये तो उन्हें नीचे लाया गया है। झारखण्ड का विकास अधूरा रह गया है। वह झारखण्ड के विकास में हाथ बंटाना चाहती हैं। अपने पिता के अधूरे सपनो को साकार करने के लिए उन्होंने दुर्गा सोरेन सेना का गठन किया है।
डीएसएस को भले ही सामाजिक संठन बताया जा रहा है लेकिन उसके तमाम मुद्दे राजनीतिक है। यूं कहें कि झामुमो के तमाम मुद्दे चाहे जल, जंगल, जमीन की बात हो या फिर आदिवासियों को न्याय दिलाने की, बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराना हो या पलायन रोकना, शिक्षा के लिए बेहतर माहौल बनाना इन तमाम मुद्दों पर डीएसएस कार्य करेगी। यह पूछे जाने पर कि कौन से सपने अधूरे रह गये हैं और उसे झामुमो के बैनर तले क्यों नहीं पूरा किया जा सकता है, जयश्री सोरेन ने कहा कि झारखण्ड में आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों के साथ बहुत शोषण होता है। राज्य के 50 लाख आदिवासी विस्थापित हो गये। दुर्गा सोरेन चाहते थे कि इन सभी को न्याय मिले और राज्य का विकास हो पर झारखण्ड के युवाआंें को यहां रोजगार नहीं मिल रहा है। रोजगार की तलाश में वे दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। जयश्री सोरेन ने कहा कि जल, जंगल व जमीन के लिए उनके दादा ने जो लड़ाई शुरू की थी, वह अब भी जारी है। अभी भी आदिवासियों को उनका अधिकार देने का प्रयास तो किया जा रहा है पर बाहरी कंपनियां और भू माफिया जमीन अधिग्रहण में लगे हैं। विस्थापितों को मुआवजा और रोजगार नहीं दे रहे हैं। इन समस्याआंें के समाधान का उनका प्रयास होगा।
लोकसभा सीट से दावेदारी ठोंक सकती है जयश्री
दुमका। जिस तरह से शिबू सोरेन परिवार की तीसरी पीढ़ी ने जेएमएम के पैरेलल एक नया संगठन खड़ा किया है। उसके राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। वैसे तो जयश्री सोरेन राजनीति में आने और चुनाव लड़ने के मुद्दे से साफ इंकार कर रही है। लेकिन राजनीति के जानकारों का मानना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन को दुमका सीट से पराजय का मुंह देखना पड़ा था। उसके बाद उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया गया। हेमंत सोरेन दुमका तथा बरहेट विधानसभा सीट से जीत दर्ज करने के बाद बरहेट विधायक के रुप में सीएम की कुर्सी पर आसीन हैं। हेमंत सोरेन द्वारा दुमका सीट छोड़ने के बाद हुए उपचुनाव में उनके छोटे भाई बसंत सोरेन उपचुनाव में जीत दर्ज कर दुमका के विधायक बने हैं। दुर्गा सोरेन की मौत के बाद जामा विधानसभा से उनकी पत्नी सीता सोरेन (मुर्मू) चुनाव लड़ती रही हैं। वर्तमान में भी वह जामा की विधायक हैं। अब सोरेन परिवार की तीसरी पीढ़ी भी अपने दादा एवं पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाना चाहती है। वर्तमान समय में उसके लिए सबसे उपयुक्त दुमका लोकसभा सीट ही माना जा रहा है। 1999 में जब शिबू सोरेन राज्यसभा सांसद थे तो दुर्गा सोरेन लोकसभा उप चुनाव लड़ना चाहते थे पर तब झामुमो ने शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन (किस्कु) को प्रत्याशी बना दिया था और वह चुनाव हार गयी थी।
डीएसएस के बैनर में न हेमंत और न बसंत
दुमका। डीएसएस के बैनर में न तो मुख्यमंत्री सह झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की फोटो थी और न ही झारखण्ड युवा मोर्चा के अध्यक्ष और दुमका विधायक बसंत सोरेन की। इस बारे में पूछे जाने पर जयश्री सोरेन ने कहा कि उसके दोनों चाचा का काम राजनीतिक है। दादा शिबू सोरेन की फोटो उन्होंने इसलिए लगायी है क्योंकि उनसे उन्हें प्रेरणा मिलती है। पिता से ज्यादा समय तक वह अपने दादा-दादी के साथ रही हैं। पिता के विजन को साकार करने के लिए उन्होंने डीएसएस का गठन किया है। यहां बता दें कि खिजुरिया के जिस आवास को गुरूजी आवास के रूप में जाना जाता है और जहां झामुमो के संगठन से लेकर चुनाव तक की रणनीति बनायी जाती है वह मूल रूप से दुर्गा सोरेन की है। दुर्गा सोरेन के निधन के बाद हेमंत सोरेन इस आवास से राजनीति की सीढ़ियां चढ़नी शुरू की और सबसे पहले झारखण्ड छात्र मोर्चा के अध्यक्ष बने। इसके बाद बसंत सोरेन ने भी इसी आवास से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत की। वह पहले छात्र मोर्चा के अध्यक्ष थे और अब युवा मोर्चा के केन्द्रीय अध्यक्ष हैं पर दुर्गा सोरेन की बेटियों को पार्टी में ऐसा कोई पद अबतक नहीं मिला है।
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