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सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय हुल दिवस समारोह शुरु


शहीद ग्राम भोगनाडीह जा रहे पदयात्रियों का कुलपति ने किया स्वागत

दुमका। संथाल हुल के वीर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु शहीद ग्राम भोगनाडीह की ओर पदयात्रा कर रहे पदयात्रियों का 26 जून को सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर कुलपति प्रो. कुनुल कंदीर ने स्वयं स्वागत किया। इसके साथ ही विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय हुल दिवस समारोह की औपचारिक शुरुआत भी हो गई। परिसर में स्थापित वीर शहीद सिदो-कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई एवं धूपबत्ती लगाई गई। कार्यक्रम का आरंभ विश्वविद्यालय कुलगीत और कुलसचिव डॉ. राजीव कुमार के स्वागत भाषण से हुआ। जामा की विधायक डॉ. लोईस मरांडी ने कहा कि गोटा भारत सिदो कान्हू हुल बैसी संगठन लगातार समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहा है, जो सराहनीय है। उन्होंने कहा, “हुल क्रांति हमें आज भी प्रेरणा देती है। ऐसे आयोजन हमें अपने इतिहास से जोड़ते हैं और युवाओं को अपने गौरवशाली अतीत से परिचित कराते हैं।” उन्होंने विश्वविद्यालय को हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया और कहा कि “मैं इस क्षेत्र की बेटी रही हूँ और इसका विकास मेरी सदैव प्राथमिकता रही है।”

संथाल हुल केवल एक विद्रोह नहीं था, बल्कि एक संगठित क्रांति: कुलपति प्रो. कुनुल

दुमका। कुलपति प्रो. कुनुल कंदीर ने सभी पदयात्रियों और अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि “आपके आगमन से विश्वविद्यालय की गरिमा और संकल्प दोनों में वृद्धि हुई है। संथाल हुल केवल एक विद्रोह नहीं था, बल्कि यह ब्रिटिश शासकों और महाजनों के अत्याचार के खिलाफ एक संगठित क्रांति थी।” उन्होंने कहा कि “आज हमारी ज़मीन, जंगल और जल अगर सुरक्षित हैं, तो वह हमारे पूर्वजों के बलिदान का ही परिणाम है।” उन्होंने कहा, “यदि आज भी हमारे समाज में कोई अन्याय हो रहा है, तो हमें फिर से हुल की भावना से संगठित होकर खड़ा होना होगा।” गोटा भारत संगठन के प्रतिनिधि गमालियाल हसदा ने कहा कि “105 किलोमीटर की यह पदयात्रा शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से की जाती है। यह यात्रा समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने, सरकार की योजनाओं को प्रचारित करने और शिक्षा के क्षेत्र में जागरूकता लाने का माध्यम है।” उन्होंने कहा कि “हम आपके भाव को अपने साथ भोगनाडीह तक ले जाएंगे।” विवि के वितीय सलाहकार ब्रजनंदन ठाकुर ने कहा कि यह आयोजन 1855 के ऐतिहासिक हुल विद्रोह की स्मृति में किया गया है और सभी को शहीदों के बताए मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू डॉ. जैनेन्द्र यादव ने किया। आयोजन को सफल बनाने में डॉ. सुजीत सोरेन, डॉ. पूनम हेम्ब्रम, डॉ. सुशील टुडू, डॉ. बिनोद मुर्मू, डॉ. अमित मुर्मू, मनीष जे. सोरेन, डॉ. चंपावती सोरेन, स्वेता मरांडी, सभी स्नातकोत्तर विभागाध्यक्ष एवं संथाल अकादमी के सदस्यों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।


 
 
 

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