" इस व्यवस्था ने इस नई पीढ़ी को क्या दिया ! सेक्स की रंगीनियां और गोली सल्फास की...!"
- Santhal Pargana Khabar
- Mar 26
- 3 min read

" इस व्यवस्था ने इस नई पीढ़ी को क्या दिया !
सेक्स की रंगीनियां और गोली सल्फास की...!"
आदम गोंडवी साहब की ये कविता भारत के युवाओं के उप्पर एकदम सटीक बैठती हैं।
वो युवा जो अपने देश और अपने लिए सुनहरे सपने का ताना - बाना बुनने में यायावर बना हुआ है । वो युवा जो किसी भी देश की उन्नति का सबसे बड़ा केंद्र होता है और इसी युवा शक्ति का महत्वपूर्ण भूमिका होती है देश की सरकार चुनने में। प्रधानमंत्री मोदी जी बड़े गर्व से कहते हैं " भारत सबसे ज्यादा युवाओं का देश है " । भारत मे जिस तरह से युवा फ़ौज बढ़ रही है उसे लीलने के लिए " सुरसा " राक्षसी की तरह नशीली ड्रग भी अपना आकार बढ़ाए जा रहा है । ये आपके घर से चंद कदमो की दूरी पर पान की दुकान से होते हुए दवा की दुकान , कॉलेज , टूरिस्ट प्लेस से लेकर सरकार के बजट होते हुए टूटे खंडहरों तक बेरोकटोक घूमते रहता है। सरकार इसके बुरे परिणाम से वाकिफ नही है, ऐसा नही कहा जा सकता । इसके उपभोग से लेकर स्टोर करने की मात्रा तक के लिए कानून है , और इससे भी काम ना चले तो रिहैब सेंटर ( नशा मुक्ति केंद्र ) बनाये गए है । आए दिनों नशे की लत के कारण समाज मे हृदय विदारक घटना देखने को मिल रही है । अभी हाल में ही घटी दुमका जिले की घटना इसका ताजा उदाहरण है। झारखंड के उप राजधानी दुमका में दो किशोर के द्वारा नशे की हालत में एक नृशंस हत्या की घटना को अंजाम दिया गया । जिसमें दो मासूम बच्चे नशे की हालत में अपने हम उम्र एक दोस्त की हत्या पत्थर से पिट कर करदेते है यही नही नुकीली चीज से उसकी आंख निकाल लेते हैं । हम कह सकते हैं यह नशा मासूम से उसकी मासूमियत छीन कर उसे क्रूर बना रही है। कहने को तो प्रत्येक साल 26 जून को एंटी ड्रग्स डे मनाया जाता है जिसमे बड़े बड़े पोस्टर में लिखा रहता है " से नो टू ड्रग्स " लेकिन सरकार अर्थव्यवस्था के रूप में इसे अनिवार्य मानकर डबल गेम खेलती है । कोरोना के लॉक डाउन में जब शराब की दुकान बंद थी और एक दिन खुलने पर शराब का तीन सौ करोड़ का व्यापार हुआ । फिर तो कई राज्यों ने दुकान खोलनेपर छूट दे दी। कहने को सरकारी महकमा कभी - कभी छोटे मोटे सप्लायर को पकड़ती है लेकिन जो बड़े स्तर पर करवाई होना चाहिए सरकार उससे मुकरती है , ऐसे में जो बच्चे युवा हो रहे हैं उनके अभिभावक या माता-पिता के ऊपर जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वो इससे अपने संतान को कैसे बचाए ? उन्हें इस बात पर नजर रखनी चाहिए कि उनके बच्चे उनसे नजर तो नही चुरा रहे। कहीं सुबह जल्दी घर से बाहर निकल कर देर रात तो घर नही आते ? वो अपना बैग , मोबाइल , पेंट को प्राइवेट तो नही रखते या किसी दूसरे व्यक्ति के छूने पर चौकन्ने तो नही हो जाते ? घर मे घुसने पर वो आई कॉन्टैक्ट बनाकर बात नही करते हैं , ये सब लक्षण दिखने पर अभिभावक को सावधान हो जाना चाहिए । ऐसे लक्षण दिखने पर उन्हें शीघ्र ही किसी मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। सबसे बड़ी बिडम्बना यह है कि अभिभावक बच्चे के नशे के लत को बीमारी के रूप में नही लेते है और ऐसे युवा समाज का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। या तो खुद को समाप्त कर लेते हैं या फिर दुमका जैसे घटना को अंजाम देते हैं। युवाओं के सपने को उड़ान भरने के लिए ये आवश्यक है कि उसमें होंसले की रीढ़ हो नही तो पूरे भारत के युवा भी उड़ते पंजाब की तरह नजर आएंगे और फिर हमें एक ऐसा युवा देखने मिलेगा जिसके चेहरे पर निराशा और हताशा बेचैनी रहेगी । जिसे गोंडवी साहब ने कुछ इस तरह बयाँ किया ।
" जिस्म क्या है. सब कुछ खुलासा देखिए
आप भी इस भीड़ में घुसकर तमाशा देखिए ।
जो बदल सकती है इस मौसम का मिजाज
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताश देखिए।
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