दुमका. झारखंड के आदिवासी समाज के लिए दुमका में लगने वाला हिजला मेला काफी महत्वपूर्ण है. आदिवासी समाज के लिए इस मेला का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है. 132 वर्ष पुराने हिजला मेला को राजकीय महोत्सव का दर्जा प्राप्त है. कोरोना के वजह से पिछले वर्ष हिजला मेला का आयोजन नहीं हुआ था. फरवरी माह में लगने बाले इस मेले की तैयारी 1 माह पूर्व ही होने लगती थी पर इस बार ऐसा कुछ होता नजर नही आरहा है. हम आपको बता दें कि प्रतिवर्ष फरवरी माह में एक सप्ताह तक लगने वाला हिजला मेला संथालपरगना प्रमंडल की सभ्यता संस्कृति से जुड़ चुका है. यहां के लोगों के लिए यह पर्व त्योहार की तरह है. इस मेले में स्थानीय और दूरदराज के हजारों लोगों को रोजगार प्राप्त होता है. सरकार के द्वारा दर्जनों विभाग के स्टॉल लगाए जाते हैं जिसमें सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाती है. खेलकूद का आयोजन होता है,तरह-तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है. ऐसे में इस वर्ष मेले का आयोजन नहीं होता देख स्थानिए लोग काफी मायूस हैं ।
क्या कहते हैं हिजला गांव के ग्राम प्रधान
हिजला मेला का उद्घाटन करने बाले हिजला गावँ के ग्राम प्रधान सुनीलाल हांसदा कहते हैं। हिजला मेला में है अपने दिशोम मारङ्ग बुरु थान का पूजा भी करते है । हमलोग कोरोना काल से निकल चुके हैं । सरकार ने स्कूल - कॉलेज खोल दिया है । चुनाव हो रहे हैं तो फिर यह मेला क्यों नहीं आयोजित हो रहा. वही गाँव के नाइकी सीता राम सोरेन का कहना है कि हिजला मेला नही लगना इस क्षेत्र के लिए अपशकुन है उनका कहना है कि बहुत पहले एक बार अंग्रेज जमाने में भी मेला नहीं लगा था तो क्षेत्र में अकाल पर गया था गांव में जानवर मरने लगे थे ऐसे में मेला का आयोजन होना क्षेत्र के लोगों सुख शान्ति के लिये बहुत जरूरी है.
1890 में अंग्रेज अधिकारी ने शुरू किया था यह मेला
हम आपको बता दें कि दुमका शहर से 5 किलोमीटर दूर मयूराक्षी नदी के तट पर लगने वाले हिजला मेले की शुरुआत 1890 में संथाल परगना जिला के तत्कालिक उपायुक्त आर .सी .कास्टेयर्स ने की थी । मेला आयोजित करने का उद्देश्य वही था जो आज सरकार आपके द्वार कार्यक्रम का उद्देश्य है मतलब अंग्रेजी शासक के द्वारा लोगों से फीडबैक लिए जाते थे और उस अनुसार योजनाएं बनाई जाती थी । उस वक्त से यह लगातार आयोजित हो रहा है ।
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